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नई दिल्ली: गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की परेशानियां बढ़ सकती हैं. कोरोना वायरस के चलते कर्ज की वसूली से जुड़ी चुनौतियां बढ़ने वाली हैं. इससे उनकी एसेट क्वालिटी पर दबाव बढ़ने के आसार हैं. इस बात के संकेत बैंकिंग नियामक ने भी दिए हैं.

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बैंकिंग सेक्टर के नियामक, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2020 तक एनपीए 6.3 फीसदी तक पहुंच चुका था. यह पांच साल में सबसे ज्यादा एनपीए था. यह मार्च 2019 की तुलना में 100 बेसिस अंक अधिक था. खास बात यह है कि कोरोना वायरस की महामारी पिछले साल मार्च में शुरू हुई थी. उसके पहले ही एनपीए पांच साल की ऊंचाई पर था.

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हाल ही में कर्जदाताओं की समिति ने दिवालिया हो चुकी एनबीएफसी दीवान हाउसिंग फाइनेंस की समाधान योजना को हरी झंडी दिखाई थी. इस योजना में पिरामल एंटरप्राइजेज ने बाजी मारी. बीते साल कोरोना से राहत के तहत दिए गए मोरेटोरियम से एनबीएफसी इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ने के आसार हैं. ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, एनबीएफसी के पास लिक्विडिटी की मात्रा पर्याप्त बनी हुई है. इसके अलावा ब्याज दरें भी काफी कम है. इसकी वजह से कंपनियों के लिए पैसा जुटाना आसान हो गया है. लिक्विडिटी की उपलब्धता से एनबीएफसी की आर्थिक सेहत का पता चलता है. एनबीएफसी छोटे कारोबार से लेकर बड़ी प्रॉपर्टी फर्मों तक को कर्ज देती हैं. इस इंडस्ट्री को किसी प्रकार का झटका अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा. वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था साल 1950 के बाद सबसे बड़ी गिरावट दर्ज करने की कगार पर खड़ी है.

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